यह अक्सर कहा जाता है कि विपरित चीजें आकर्षित होती है लेकिन क्या यह मनुष्यों पर भी लागू होता है? यदि स्वर्ग में हलचल हो तो क्या होगा? जीवन हमेशा सुखो से भरा हुआ नहीं होता है। ज्योतिषीय फलकथन केवल भविष्य का फनकथन नहीं है। कुंडली मनुष्य के स्वभाव, उसकी पसन्द और नापसन्द, सामाजिक व्यवहार की कुशलताएं और उसके व्यवहार करने के तरीके के बारे में भी बताती है। भारतीय समाज में विवाह को जन्मों का संबंध माना जाता है। संभावित दूल्हा और दुल्हन के मध्य संवादिता सुनिश्चित करने के लिये उनकी कुडली का मिलान करना ही एक विकल्प है। विवाह के बाद युगल एक दूसरे को प्रभावित करते हैं और उनकी कुंडली का सम्मिलित असर उनके भविष्य पर होता है। एक बार विवाह हो जाये उसके पश्चात उनकी कुडली जीवन भर के लिये उनके भविष्य और जीवनप्रणली को सामुहिक रूप से प्रभावित करती है।
सामान्यतः उत्तर और दक्षिण भारत में कुंडली मिलाने का तरीका एक जैसा है। फिर भी कुछ बातें दक्षिण भारत में थोड़ी अलग हैं। कुंडली मिलाते समय आठ मुख्य चीजें उत्तर और दक्षिण भारत में एक सामान रूप से देखी जाती हैं । ये हैं-
- वर्ण
- वश्य
- तारा या दिन
- योनि
- ग्रह मैत्री
- गण
- भकुट
- नाड़ि
हर घटक को एक निश्चित अंक दिया गया है जो इस तरह हैं-
वर्ण को1 अंक , वैश्य को 2, दिन को 3, योनी को 4, ग्रह मैत्री को 5, गण को 6, भकूट को 7 और नाड़ी को 8 अंक दिया गया है । सबका जोड़ कुल 36 अंक होते हैं।
इस मानदंड के आधार पर, दो संभावित लोगों की कुंडली को मिलाना और उसके फल की गणना करना ही गुण मिलान – कहलाता है.
36 में 18 अंक 50 % हुआ जिसे औसत माना जाता है और 28 अंक मिले तो संतोषजनक मानते हैं। कुंडली मिलाने के समय कम से कम 18 अंक मिलने चाहिए।
यदि होनेवाले दूल्हा दुल्हन एक ही नाड़ी के हों तो यह नाड़ी दोष कहलाता है। उदहारण के लिए, यदि दोनों की मध्य नाड़ी हो तो इस नाड़ी दोष से बच्चे के जन्म में समस्या आती है। इस तरह के मामले में बच्चे के जन्म की सम्भावना नहीं के बराबर रहती है। इसमें शामिल युगल का रक्त समूह से सीधा संबंध रहता है।
यह एक गहन अध्ययन का विषय है और संवादिता की गणना के दौरान केवल इन्ही कारकों को क्यों देखा गया । फिर भी इसकी वैधता पर सवाल नहीं किये जा सकते। उदहारण के लिए, यदि लड़की श्वान योनी (श्वान -कुत्ता) में पैदा हुई और लड़का मंजर योनी (मंजर- बिल्ली) का है, तो ऐसी स्थिति में लड़की हमेशा लड़के पर हावी रहेगी। यह भविष्यवाणी कुत्ता बिल्ली के स्वाभाव के आधार पर की जा सकती है।
पूरे भारत में कुंडली मिलाते समय मंगल दोष को गंभीरता से लिया जाता है जबकि ज्योतिषी शनि दोष को उतना गंभीर नहीं मानते हैं। कुंडली मिलाते समय राशि यानि चन्द्र राशि का सही तरीके से मिलान और उसके फल पर विचार करना चाहिए। कुंडली मिलाते समय लग्न का भी उतना ही महत्त्व है।
दक्षिण भारत में कुंडली मिलाते समय इन 10 कारकों पर विचार किया जाता है-
- धिना- सितारों के आधार पर होनेवाले दूल्हा दुल्हन के दापंत्य जीवन की आयु के आधार पर गणना की जाती है।
- गण – सुखी जीवन और सामान्य भलाई का प्रतिनिधित्व करता है।
- महेंद्र- बच्चे के जन्म की संभावना से संबंधित है।
- स्त्री दीर्घा-यह भी सुखी और सामान्य जीवन के लिए होता है।
- योनी-आनंददायक और संतुलित वैवाहिक जीवन के लिए देखा जाता है।
- राशि-यह संतान तथा उनकी खुशी के लिए होता है।
- रहस्याधिपति- यह भी वंश और धन के बारे में होता है।
- वैस्य- यह विवाह से मिलने वाले प्यार और खुशियों के लिए होता है।
- रज्जू- यह लम्बे वैवाहिक जीवन के लिए काफी महत्वपूर्ण है और साथ ही साथ दूल्हा दुल्हन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
- वेधई -यदि वेधई शून्य हो तो वैवाहिक जीवन, सभी तरह की विपदाओं से बचा रहता है।
कुंडली मिलान और गुण गणना भारत में बहुत प्रचलित प्रथा है। यहां सामान्य लोग जानते हैं की वैवाहिक बंधन में बंधने के लिए कितने गुणों की आवश्यकता होती है। कुछ ज्योतिषी कुंडली मिलाने के परंपरागत तरीकों का ही अनुसरण करते हैं। गणेशजी कुंडली मिलाने के दौरान पाश्चात्य ज्योतिषिय अवधारणाओं पर अमल करते हैं।
यह तरीका कॉम्पोसाईट चार्ट कहलाता है। गणेशजी का मानना है कि कुंडली मिलाने में पारंपरिक तरीके के अलावा कॉम्पोसाईट चार्ट भी सफल वैवाहिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कॉम्पोसाईट चार्ट एक विधि है जिसमें एक कुंडली के प्रभाव की तुलना को दूसरे की कुंडली से की जाती है। जैसे- दूल्हे का लग्न तुला है और दुल्हन का मकर, ऐसे में वैवाहिक गठबंधन नहीं होना चाहिए क्योंकि दोनों एक दूसरे के वर्ग में हैं। इस कारण दोनों में विचारक मतभेद और संघर्ष होता रहेगा। दूसरी ओर अगर दूल्हा तुला लग्न में और दुल्हन कुंभ में हो तो उनका जीवन बहुत ही आनंदमय बितेगा क्योंकि दोनों की राशि में एक ही तत्व है -वायु।
दूसरी स्थिति में यदि दूल्हा अपना व्यवसाय करता है और दूल्हन का राहू और शनि दूल्हे के तीसरे घर को प्रभावित करता है तो शादी के बाद दूल्हे को व्यवसाय में हानि उठानी पड़ेगी।
आपसी शारीरिक आकर्षण के लिए दूल्हा के साथ ही दुल्हन का शुक्र अनुकूल स्थिति में होना चाहिए। अगर वे त्रिकोण में हैं तो यह अच्छा हो सकता है, अगर वे केन्र्द में होंगे तो यह प्रेम जीवन में तनाव का संकेत है। इसी तरह, युगल के लिए सामान्य खुशियां और दोनों के बीच मजबूत बंधन के लिए दोनों कुंडली में सप्तम भाव के मालिक के बीच अच्छे संबंध होने चाहिए।
इस तरह से संबंधों की अनुकूलता मिलाने की लम्बी सूची है जो कि कुंडली मिलाने के लिए अन्य भारतीय ज्योतिषों के बीच लोकप्रिय होने में थोड़ा समय ले सकता है। गणेशजी को विश्वास है कि पुरानी प्रणाली के साथ यदि कोम्पोसाईट चार्ट को प्रभावी तरीके से मिलाया जाए तो कुंडली मिलान और भी ज्यादा सटीक और विश्वसनीय हो सकता है।
मुहूर्त का महत्त्व
दूल्हा दुल्हन के लिए सिर्फ कुंडली मिलाना ही सबकुछ नहीं है बल्कि विवाह के शुभ मुहूर्त भी सफल वैवाहिक जीवन के लिए बहुत मायने रखता है। अगर ग्रहों कि चाल सही नहीं है या लग्न को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं या मुहूर्त के सातवें घर में या फिर अगर चन्द्रमा शादी के समय पर बुरी तरह प्रभावित होता है तो खुशियां कम हो जाती हैं। चन्द्रमा को पाप ग्रह के नक्षत्र से नहीं गुजरना चाहिए या कम से कम उस राशि में नहीं होना चाहिए जो मजबूत पाप ग्रह – शनि, राहू और केतु के मार्ग में हो। मुहूर्त को पूरे भारत में उचित महत्त्व दिया जाता है।
कुंडली का मिलान तब अधिक प्रभावी और उपयोगी हो जाता है जब गणना में सभी कारकों पर विचार किया जाए। कुंडली मिलान के साथ ही उससे संबंधित विवरणों की उचित व्याख्या जरुरी है ताकि भविष्यवाणी सटीक हो। यह वैवाहिक जीवन में बड़े झटके को कम कर देता है। भारतीय संस्कृति में कुंडली मिलान बहुत ही सामान्य बात है। यह शायद लम्बे भारतीय वैवाहिक जीवन का एक मुख्य कारणों में से एक है क्योंकि कुंडली युगल के गुणों के मिलान का अनुपात जांचता है। यह गलत धारणा है कि कुंडली मिलान सिर्फ घरवालों कि मर्जी से की जानेवाली शादी के लिए ही जरुरी है। प्रेम विवाह के लिए भी यह नियम समान रूप से लागू होता है। यह रिश्ते की लम्बी उम्र की भविष्यवाणी करता है और उन कारकों पर विचार करता है जिसके बारे में लोग प्रेम में डूबे होने के कारण ध्यान नहीं देते। समय बीतने के साथ ही अब प्रेम विवाह में भी कुंडली मिलान की मांग की जाने लगी है, विशेष रूप से होनेवाले दूल्हा दुल्हन के माता पिता की ओर से यह मांग काफी होती है।
वर्षों पहले शेक्सपियर ने हमेशा की तरह बहुत ही पते की बात कही थीः
विवाह अटोर्नीशीप में निपटने से भी
लायकता के विषय से भी अधिक विषय है
क्योंकि विवाह नर्क की राह ले जाता है
एक असहमति और निरंतर कलह की अवधि है?
इसके विपरित की स्थिति परमसुख प्रदान करती है,
और यह स्वर्गीय शान्ति का एक पैटर्न है।
गणेशजी के आशीर्वाद सहित
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम