भविष्यवाणियों शनि-केतु की युति यानि आध्यात्म की चरमता

शनि-केतु की युति यानि आध्यात्म की चरमता

12 अक्टूबर 2007 को सुबह 06:30:41 बजे माघ नक्षत्र के चतुर्थ चरण में 10:39:30 अंश के साथ सिंह राशि में शनि और केतु की युति (Saturn-Ketu conjunction) होगी। यह युति कन्या लग्न और कर्क नवांश में होगी। युति के समय चंद्रमा तुला राशि में 03:34:21 अंश पर स्थित रहेगा।

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यदि आप स्थानीय प्रशासन या एनजीओ अथवा किसी श्रमिक कल्याण संगठन से जुड़े हैं, तो आपको अपने कार्यक्षेत्र में विशेष सफलता और जिम्मेदारी का पद प्राप्त होगा। इस वर्ष आपकी अचल संपत्ति में वृद्धि की प्रबल संभावना है। संभावना की यह अवधि पिछले एक साल से जारी है। इस वर्ष के दौरान आपका स्वास्थ्य सामान्य रूप से अच्छा बना रहेगा।

आपके व्यवसाय के घर में राहु का गोचर आपको अभी कुछ अलग करने के लिए प्रेरित कर सकता है अन्यथा आप अपने साइड बिजनेस को अपने मुख्य पेशे में बदलने का निर्णय ले सकते हैं। साझेदारी व्यवसाय के लिए बृहस्पति का गोचर आपको किसी ऐसे पार्टनर से मिला सकता है जो वास्तव में आपका भला चाहेगा और आपको लाभ देगा। आप किसी लंबी बीमारी के शिकार नहीं होंगे।

शनि की साढ़े साती के अशुभ प्रभाव से आप मुक्त हैं। वित्तीय संस्थानों और बैंकों से धन की व्यवस्था करने में आपको बड़ी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। धन के घर और प्रोफेशन के भाव पर बृहस्पति की दृष्टि आपकी आय के स्रोतों में वृद्धि का कारण बन सकती है। आपका स्वास्थ्य अच्छा बना रहेगा।

आप पर शनि की साढ़े साती के अंतिम चरण का प्रभाव है। इसलिए, जैसा कि नीचे बताया गया है, आपको इसके लिए सही उपाय करने चाहिए। इस वर्ष आपकी अचल संपत्ति में वृद्धि होगी। 22 नवंबर 2007 के बाद आपकी आय में वृद्धि होगी। 22 नवंबर 2007 तक आपकी राशि पर बृहस्पति का शुभ प्रभाव नवें घर के रूप में आपको अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद करेगा।

आप पर साढ़ेसाती के दूसरे चरण का प्रभाव है। आपको नीचे दिए गए उपायों को अपनाना चाहिए। इस वर्ष आप किसी न किसी रूप में अचल संपत्ति अर्जित करेंगे। आप अपने ध्यान के अभ्यास में उच्च स्तर के आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करेंगे।

एक नवंबर 2006 से आप अगले साढ़े सात वर्षों के लिए शनि की साढ़े साती के प्रत्यक्ष प्रभाव में आ गए हैं। आप योजनाओं को तैयार करने में बहुत सारी मानसिक ऊर्जा खर्च करेंगे। गुरु का गोचर आपके लिए अनुकूल रहेगा, इसके कारण पब्लिक रिलेशन, पार्टनरशिप और वैवाहिक जीवन में आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन, गणेश आपको नीचे बताए गए कुछ उपाय करने की सलाह देते हैं। राहु और शनि का गोचर आपको स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता का भी संकेत दे रहा है।

साझेदारी के व्यवसाय के लिए अभी ग्रहों की स्थिति भाग्यशाली नहीं है। सही समय पर आपके पुराने मित्रों का सहयोग मार्गदर्शन और वित्तीय नियंत्रण के रूप में मददगार साबित हो सकता है। गुरु का गोचर लाभकारी परिणाम लाएगा। लेकिन, केतु के साथ शनि काम में अचानक सकारात्मक बदलाव दे सकता है। दीपावली के बाद चेहरे पर चमक आएगी।

गुरु का आपकी राशि में गोचर आपके प्रोफेशनल कॅरियर में प्रगति के लिए मददगार साबित होगा। आपके द्वारा सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं और विलासिता का आनंद लेने की प्रबल संभावना है। गुरु के गोचर से आपके व्यक्तित्व में आकर्षण और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। उच्च शिक्षा की आपकी महत्वाकांक्षा भी पूरी होगी।

आपको अपने उद्यम से तुरंत लाभ नहीं मिल सकेगा। मनचाहा लाभ पाने के लिए आपको नवंबर तक का इंतजार करना पड़ सकता है। इस वर्ष किसी न किसी रूप में आपकी अचल संपत्ति में वृद्धि होगी। आप धर्मार्थ गतिविधियों पर या लोक कल्याण के बाद पैसा खर्च कर सकते हैं। इस साल आपको दो महत्वपूर्ण यात्राओं का लुत्फ उठाने का मौका मिलेगा।

आपके राशि स्वामी केतु के साथ आठवें भाव में युति है। वहीं राहु आपके दूसरे भाव में विराजमान है। गणेश आपको नीचे बताए अनुसार भगवान शिवजी और भगवान हनुमानजी के लिए संभावित उपायों को स्वीकार करने की सलाह देते हैं। इस वर्ष सगाई या विवाह आदि के लिए शुभ संकेत बन रहे हैं। आपका स्वास्थ्य आम तौर पर पूरे वर्ष अच्छा बना रहेगा।

गुरु आपकी राशि से दसवें भाव में है। 10 वां घर प्रोफेशन और रोजगार का केन्द्र है। राहु आपकी राशि में है। आपको नई संपत्ति, भूमि, मकान और वाहन आदि प्राप्त होने की संभावना है और आप नियमित आय का भी आनंद ले रहे होंगे। केंद्र में बृहस्पति का शुभ प्रभाव आपके सामान्य स्वास्थ्य और कार्य कुशलता को बनाए रखेगा।

शनि और केतु का छठे भाव में गोचर आपको अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में मदद करेगा। वहीं दूसरी ओर गुरु का गोचर भी आपके लिए मददगार है। इस वर्ष गुरु का धर्म भाव से शुभ गोचर आपको आध्यात्मिक प्रगति प्राप्त करने में मदद करेगा। आप पुरानी संपत्ति, मशीनरी और वाहन आदि खरीदने के लिए ऋण लेने के बारे में सोच सकते हैं लेकिन निर्णय लेने में सावधानी बरतें।

यहां, गणेश शनि और केतु की बुनियादी विशेषताओं का वर्णन करना चाहते हैं।


रैंक : ब्रह्मा
रंग : गहरा
तत्व : वायु
जाति : शूद्र
प्रकृति : तामसिक
धातु : मांसपेशियां
अनुकूल दिशा : पश्चिम
ऋतु : शिशिर

बाह्य रूप से, शनि उन लोगों को दर्शाता है जो निम्न स्तर पर कार्य करते हुए बुनियादी सुविधाओं को बनाए रखते हैं: सेवा करने वाले लोग, श्रमिक वर्ग, हाथ से काम करने वाले लोग, लंबे समय से अपनी नौकरी के लिए समर्पित लोग, बहुत जिम्मेदार और प्रतिबद्ध लोग। साथ ही वे जो बहुत अंतर्मुखी हैं या लोगों की नज़रों से छिपे हुए हैं, शोधकर्ता, एकांतप्रिय, भिक्षु, उन्हें भी शनि दर्शाता है। शारीरिक रूप से, शनि जोड़ों, अस्थियों और मांसपेशियों को दर्शाता है जो कंकाल को गति प्रदान करने का कार्य करते हैं। यह तंत्रिका तंत्र के भौतिक पहलू को भी दर्शाता है।

आध्यात्मिक रूप से, शनि शरीर के शीर्ष पर स्थित कपाल में मौजूद सहस्त्रार चक्र का प्रतीक है जिसका रंग नीला या बैंगनी है। सहस्त्रार चक्र पूरे शरीर को काम करने के लिए नियंत्रित करता है। इसका मुख्य कार्य शरीर और मन के बीच संबंध बनाए रखना है। इसका उद्देश्य सहज ज्ञान तथा आध्यात्मिकता का एकरस संबंध स्थापित करना है। “हजार पंखुड़ियों वाले कमल दल” अथवा सहस्त्रार चक्र को ऊर्जा का प्रवेश द्वार माना जाता है। सहस्त्रार चक्र के माध्यम से सभी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा जो हमें चाहिए होती है, हमारे शरीर में आती है। हमारे सौरमंडल में शनि को उसके चारों ओर स्थित छल्लों के लिए भी जाना जाता है जो हमारे सौरमंडल के साथ-साथ शनि की भी अपनी विशेष पहचान है।


जाति : मिश्रित जाति
कपड़े : पुराने चिथड़े
रंग : नीला रत्न
पदार्थ : जीव

बाह्य रूप से, केतु उन लोगों को दर्शाता है जो रहस्यमय व्यक्तित्व रखते हैं, जो अमूर्त या समझ से बाहर के विचार रखते हैं, और अपनी असली पहचान नहीं दिखाते हैं, उदाहरण के लिए हम जासूस, गणितज्ञ, अंतर्दृष्टि की चमक वाले लोग, आविष्कारकों को इस श्रेणी में मान सकते हैं। भौतिक रूप से, केतु को मंगल के ही समान विशेषताओं वाला माना जा सकता है।

आध्यात्मिक रूप से, राहु और केतु दो अलग-अलग शरीर हैं। राहु के पास सहस्त्रार चक्र है जबकि केतु के पास मूलाधार चक्र है। इसलिए, केतु मूलाधार चक्र पर शासन करता है जिसका रंग लाल है और गुदा और यौन अंगों के बीच के बिंदु पर स्थित है। यदि सहस्त्रार चक्र और मूलाधार चक्र के बीच सकारात्मक ऊर्जा का परफेक्स बैलेंस है तो ही भौतिक शरीर में बुद्धि और पूर्ण आध्यात्मिक ऊर्जा का सही सामंजस्य होगा।


शनि और केतु दोनों को ही वैदिक ज्योतिष में आध्यात्मिक ग्रह माना गया है। हालांकि वैदिक ज्योतिष में शनि-केतु या शनि-राहु की युति (Saturn-Ketu conjunction) विशेष रूप से कुछ घरों में अच्छी नहीं मानी जाती है। जिनकी कुंडली में शनि और केतु की स्थिति कमजोर है, उनके पास शनि के केतु के साथ गोचर से सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने का अच्छा समय है। उन्हें इस समय अधिक पूजा करनी चाहिए और धार्मिक अनुष्ठानों को बढ़ाना चाहिए। शनि के गोचर के समय ऊर्जा बढ़ाने के लिए भगवान शिवजी या हनुमानजी की पूजा करनी चाहिए। वहीं दूसरी ओर केतु के गोचर से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सर्पसूक्त पाठ करना चाहिए या भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए।

गणेश सहस्त्रार चक्र की ऊर्जा को बढ़ाने के लिए बीज मंत्रों का एक अन्य तरीका भी बताते हैं। सहस्त्रार चक्र के लिए बीज मंत्र ‘ॐ’ है। अपने नासिका छिद्रों के माध्यम से श्रव्य रूप से श्वास लेते हुए इसका उच्चारण करें, और ली गई श्वांस को अपनी भौहों के बीच के बिंदु तक निर्देशित करें। एक सूक्ष्म रूप से श्रव्य फुसफुसाहट के रूप में अपने श्वांस छोड़ने के साथ ध्वनि का उच्चारण करें, जिससे ध्वनि और श्वांस दोनो ही कपाल क्षेत्र में गूंजने लगे।

‘लं’ मूलाधार चक्र का बीज मंत्र है। अपनी जीभ की नोक को ऊपर और पीछे मोड़ें, और इसे ऊपरी तालू के पिछले भाग पर रखें ताकि बिना आद्याक्षर के ध्वनि का उच्चारण किया जा सके। बीज मंत्र की जड़ें हिंदू अद्वैत परंपरा में हैं, इसलिए उनका सही प्रकार से लाभ उठाने के लिए गुरु का आशीर्वाद लेकर उनकी मदद से सीखा जाना चाहिए। गणेश आपको सलाह देते हैं कि आप शनि और केतु (Saturn-Ketu conjunction) से न डरें, अच्छे कर्म करते रहें और ईश्वर में आस्था रखें। इस प्रकार आप शनि और केतु के अशुभ प्रभावों से बचे रहेंगे।

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गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम