समस्त वेदों का सार, गायत्री मंत्र: ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
गायत्री मंत्र का अर्थ:
हे प्रभु, जीवन के दाता, दुःखों के नाशक, सुख-शांति देने वाले, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा हमें शक्ति दीजिए। कृपा करके आप हमारी बुद्धि को सही रास्ते की ओर ले जाइये।
कौन हैं माँ गायत्री
गायत्री के तीन अक्षरों में तीन तीर्थ समाए हैं- ग-गंगा, य-यमुना, त्र-त्रिवेणी। इसमें डुबकी लगाने यानी इनकी आराधना से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं। माँ गायत्री प्रज्ञा की देवी हैं। प्रज्ञा अर्थात सद्बुद्धि गायत्री के बताये हुए मार्ग पर चलने से मिलती है। यह सद्बुद्धि मानवजीवन में कामधेनु के समान है। उपनिषद में कहा गया है: ‘हे गायत्री देवी ! श्वेत पद्म आपका आसन है। तू स्वयं परम प्रकाश स्वरूप हो। वाणी में तू अर्थ है। हे दिव्यांगिनी ! हम सभी के जीवन को परमज्ञान से प्रज्वलित करो। गायत्री माता का वाहन हंस है। यह मनुष्य के अंदर विवेक-दृष्टि जागृत करके अच्छे-बुरे का ज्ञान कराती हैं। सन्मार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देती हैं। माता के एक हाथ में पुस्तक और दूसरे हाथ में कमण्डल शोभायमान हैं। पुस्तक स्वाध्याय में अभिरुचि पैदा करने की और कमण्डल आपके मन को जल जैसा शीतल रखने की प्रेरणा प्रदान करता है। क्या वर्ष 2023 में आप कैरियर में वांछित सफलता प्राप्त कर पाएंगे, इस बारे में जानने के लिए खरीदें कैरियर संभावना रिपोर्ट।
गायत्री महिमा
गायत्री माता वेदमाता हैं। गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों की व्याख्या में चारों वेद, श्रुतियां और गीता का ज्ञान समाया हुआ है। शास्त्रों में उल्लेख है कि ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ के शीर्ष भाग की व्याख्या अनुसार ऋग्वेद बना। ‘तत्सवितुर्वरेण्यं’ का रहस्य यर्जुवेद में देखने को मिलता है। ‘भर्गो देवस्यः धीमहि ‘ का तत्वज्ञान सामवेद में समाया हुआ है। ‘धियो यो नः प्रचोदयात्’ की शक्तियां ऋगवेद में समायी हुई हैं।
गायत्री माता को देवमाता भी कहा गया है। ये आपके हृदय में विराजित होकर आपके विचारों को परिष्कृत करती हैं। आप दैवी शक्तियों की कृपा के पात्र बन जाते हैं। हमारे अंदर देवगुण विकसित होने से हमें केवल अपना परिवार ही नहीं, संपूर्ण समाज और विश्व अपना-सा लगने लगता है। गायत्री माता की अनुकम्पा से हमारा व्यक्तित्व उत्तम और आचरण आदर्श बनता है। इस प्रकार से देवमाता गायत्री साधक को ज्ञान के उच्चतम स्तर पर ले जाती हैं। गायत्री माता को जगत माता कहा गया है। ये परमात्मा की शक्ति हैं। जो अणु मात्र में और समूचे विश्व-ब्रह्मांड में व्याप्त हैं। गायत्री के विराट दर्शन की यह मान्यता, भावना, विचार पद्धति और कार्यशैली साधक की अंतरात्मा को अभिनव आनंद की अनुभूति कराती है। विश्वमाता की सानिध्यता और अनुकंपा से जीवात्मा को जीवन-मरण के बंधनों से मुक्ति मिलते हुए मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गायत्री मंत्र की महिमा सभी शास्त्रों, संप्रदायों और ऋषि-मुनियों ने एक स्वर में स्वीकार्य की है। अर्थवेद में गायत्री की स्तुति है। इसमें गायत्री को आयु, प्राण, संतान, संपत्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है। नरक रूपी समद्र में गिरते हुए मनुष्य को हाथ पकड़कर बचाने वाली गायत्री है। जिस प्रकार से फूल का सारभूत मधु, दूध का धृत, रसों का सारभूत दूध है, ठीक उसी प्रकार गायत्री-मन्त्र समस्त वेदों का सार है। कहा भी गया है कि गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है, केशव से श्रेष्ठ कोई देव नहीं है और गायत्री मंत्र के जप से श्रेष्ठ कोई जप आज तक न हुआ है और न आगे होगा। वर्ष 2023 में आपकी वित्तीय स्थिति कैसी होगी ? इसका जवाब जानने के लिए खरीदें 2023 वित्त रिपोर्ट।
गायत्री की श्रद्धापूर्वक उपासना से बुद्धि निर्मल बनती है। हमारे अंदर फिर से जीवन के स्रोत का स्फुटन होता है। शरीर निरोगी रहता है। स्वभाव व विचारों में विनम्रता व सात्विकता का संचार होता है। बुद्धि के सूक्ष्म बनने से दूरदर्शिता बढ़ती है। स्मरण शक्ति का विकास होता है। इस प्रकार से मन की बुद्धि को शुद्ध करने के लिए गायत्री मंत्र अद्भुत व चमत्कारी है।
इसमें संदेह नहीं करना चाहिए कि माँ गायत्री की असीम कृपा से हमारा जीवन सर्वथा सफल बनता है। सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ईर्ष्या-द्वेष के भावों का त्याग होने से आत्मशुद्धि होती है। लोक-कल्याण की भावना जन्म होती है। दूसरा कुछ करें या न करें, गायत्री मंत्र जरूर जपें। चारों वेदों का फल इसी में समया हुआ है। गायत्री मंत्र केवल हिंदुओं और ब्राह्मणों का मंत्र न होकर संपूर्ण विश्व का मंत्र बने तो समग्र विश्व वसुधैव कुटुम्बकम बन जाए।
गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम
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