भविष्यवाणियों भानु सप्तमी 2019 व्रत, तारीख, कहानी, महत्व और पूजा

भानु सप्तमी 2019 व्रत, तारीख, कहानी, महत्व और पूजा

भानु सप्तमी 2019 व्रत, तारीख, कहानी, महत्व और पूजा

भानु सप्तमी 2019 व्रत, तारीख, कहानी, महत्व और पूजा

भानु सप्तमी व्रत से होती है आरोग्य की प्राप्ति

सूर्य और चन्द्र प्रत्यक्ष देव माने जाते हैं। प्राचीनकाल से ही सूर्य को पूजनीय और वंदनीय माना जाता रहा है। यही नहीं सूर्य की रोग शमन शक्ति का उल्लेख वेदों, पुराणों और शास्त्रों आदि में भी है। स्वस्थ और निरोगी काया के लिए सूर्य सप्तमी या भानु सप्तमी के दिन सूर्य की उपासना करने का विधान है। जब सप्तमी तिथि रविवार के दिन आती है, उसे भानु सप्तमी कहा जाता है। इस दिन सूर्य देव पहली बार सात घोडे़ के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे। इसलिए इसे सूर्य सप्तमी भी कहते है। इस दिन सूर्य देव ने पहली बार धरती पर अपना प्रकाश फैलाया था और धरती से अंधेरा दूर कर धरती को प्रकाशमान किया था। यह व्रत स्त्रियों के लिए मोक्षदायिनी है। यह व्रत प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है। इस माह 9 जून 2019 रविवार को भानु सप्तमी मनायी जाएगी।

भानु सप्तमी पूजन और लाभ

इसी दिन जातक स्नान के बाद सूर्य देव को जल चढ़ाने के साथ ही स्थल परिक्रमा भी करते है। इस दिन उपवास का भी विधान है। भानु सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में स्नान कर सूर्य को दीपदान करना उत्तम फलदायी माना गया है। सूर्य देव की पूजा करने से बीमार व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ होता है और वह दीर्घायु को प्राप्त करता है। इतना ही नहीं प्रतिदिन सूर्य देव को जल चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता है और व्यक्तित्व में निखार आता है। मानसिक शांति की भी प्राप्ति होती है। भानु सप्तमी को अर्क, अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है।

पौराणिक मान्यता

भविष्यपुराण के मुताबिक एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि, कलयुग में किस व्रत के प्रभाव से स्त्री को मोक्ष मिलता है? इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें इंदुमती नामक वेश्या की कथा सुनाई। कथा के मुताबिक एक बार इंदुमति ने ऋषि वशिष्ठ के पास गई और उनसे कहा कि, उसने आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं किया है, ऐसे में उसे मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी? उसकी बात सुनकर वशिष्ठ मुनी ने उसे बताया कि स्त्रियों को मुक्ति, सौभाग्य और सौंदर्य देने वाले अचला सप्तमी से बढ़कर और कोई व्रत नहीं है। उन्होंने उसे माघ शुक्ल सप्तमी के दिन यह व्रत करने को कहा। इसके बाद इंदुमति ने विधिपूर्वक यह व्रत किया और व्रत के प्रभाव से उसे स्वर्गलोक में स्थान मिला।

पूजन विधि

– दैनिक क्रिया से निवृत होकर सूर्यदेव की अष्टदली प्रतिमा बनाकर मध्य में शिव व पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करें। – पूजन के बाद तांबे के बर्तन में चावल भरकर ब्राह्मणों को दान करना लाभदायक होता है।- महिलाओं को इस दिन एक बार भोजन कर सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए।- भानु सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी या जलाशय में स्नान कर सूर्य को दीपदान करने का भी महत्व है।

सूर्य देव का मंत्र

ओम सूर्याय नम:
इस मंत्र के जाप से दीर्घायु की प्राप्ति होती है। अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त होती है और सभी प्रकार के आधि, व्याधि और उपाधि से मुक्ति मिलती है।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

आचार्य धर्माधिकारी के साथ आचार्य कृष्णमूर्तिगणेशास्पीक्स डॉट कॉम/हिंदीये भी पढ़ें-निर्जला एकादशी व्रत कैसे करें और कमाएं पुण्य
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