भविष्यवाणियों दत्तात्रेय जयंती: पूजा विधान दिसंबर 2023 – दत्तात्रय जयंती: संपूर्ण पूजा विधि

दत्तात्रेय जयंती: पूजा विधान दिसंबर 2023 – दत्तात्रय जयंती: संपूर्ण पूजा विधि

दत्तात्रेय जयंती: पूजा विधान दिसंबर 2023 – दत्तात्रय जयंती: संपूर्ण पूजा विधि

दत्तात्रेय जयंती 2023 – तिथि, व्रत और पूजा विधि सहित उपाय

मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा भगवान दत्तात्रेय के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को दत्तात्रेय जयंती भी कहा जाता है। इस साल 2023 में दत्तात्रेय जयंती 18 दिसंबर को मनाया जाएगा। महायोगी प्रभु दत्तात्रेय को त्रिमूर्ति के संयुक्त रूप में पूजा जाता है। भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का स्वरूप माने गए। पौराणिक धर्म ग्रन्थों के अनुसार एक बेहद रोचक घटनाक्रम के बाद जन्मे भगवान दत्तात्रेय का जीवन भी बेहद रोमांचक, ज्ञान और सीखों से भरा रहा। वैदिक मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय में ईश्वर एवं गुरू दोनों रूप समाहित है इसी कारण उन्हें श्री गुरुदेवदत्त भी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की विधिवत पूजा और व्रत से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और दु:ख दर्द से मुक्ति मिलती है।

विष्णु स्वरूप दत्तात्रेय

गुरू दत्तात्रेय त्रिदेवों का संयुक्त स्वरूप हैं, इन्हें गुरु और ईश्वर दोनों का स्वरूप माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय के तीन मुख और छह हाथ हैं। उनके एक तरफ गाय और दूसरी ओर श्वान बैठे दिखाई देते हैं। मान्यताओं के अनुसार गुरु दत्तात्रेय ने कुल 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की उनके गुरूओं में प्रकृति, पशु पक्षी, चींटी, अजगर और मनुष्य भी शामिल है।

दत्तात्रेय पूजा और व्रत विधि

भक्तों में स्मृतिगामी के नाम से विख्यात भगवान दत्तात्रेय भक्त वातसल्य हैं और भक्तों के स्मरण मात्र से ही प्रसन्न हो उनके दु:ख हरने चले आते हैं, इसीलिए उन्हे स्मृतिगामी कहा जाता है। भगवान दत्तात्रेय की पूजा विधि बेहद आसान है, मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नान करने के बाद भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा, चित्र या मन में उनका स्मरण कर व्रत की प्रतिज्ञा लें। संभव हो तो किसी पवित्र नदी अथवा कुंड में स्नान करें। दिन भर दत्तात्रेय व्रत नियम का पालन करें और संभव हो तो कुत्ते और गाय को भोजन करवाएं। भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा या चित्र के समझ बैठें और धूप, दीप, चंदन, हल्दी, मिठाई, फल, फूल आदि पूजा में लगने वाली समस्त वस्तुओं के साथ प्रभु की पूजा करें। भगवान दत्तात्रेय को पीले फूल और पीली चीजें अर्पित करें। इस दौरान आप ओम द्रां दत्तात्रेयाय नमः मंत्र का जाप करें। इस दिन खुद भी प्रसन्न रहें और अन्य लोगों को भी खुश रखने का कार्य करें। पूजा के बाद दान और पुण्य के कार्य करें।

दत्तात्रेय व्रत और पूजा के लाभ

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने एवं उनके दर्शन – पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भगवान दत्तात्रेय के व्रत और पूजन पूजन से जातक को गलत संगति और गलत रास्तों पर जाने से बच जाता है। संतान और ज्ञान प्राप्ति की कामनाएं पूरी होती हैं। दत्तात्रेय की पूजा से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। जातक को जीवन में सुमार्ग पर चलने की प्रेरण मिलती है और पापों का अंत होता है।

दत्तात्रेय जयंती कथा

धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सरस्वती को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमंड हो गया। नारद जी को जब इनके घमंड के बारे में पता चला तो इनका घमंड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास जाकर देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे। ईर्ष्या से भर उठी देवियों ने नारद जी के चले जाने के बाद देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की जिद ठान ली। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियों के सामने हार माननी पडी़ और वे तीनों देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खडे़ हो गए। जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगी तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की। अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए देवी अनुसूया उनके लिए भोजन की थाली परोस लाई, लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इन्कार करते हुए कहा कि जब तक आप हमें गोद में बिठाकर भोजन नहीं कराएंगी, हम भोजन नहीं करेंगे। अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनो की मंशा जान ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया, जिससे तीनों ने बालरुप में आ गए। बालरुप में तीनों को भरपेट भोजन कराने के बाद, देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगी। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे और काफी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश घर नहीं लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिंता सताने लगी। अपनी भूल पर पछतावा होने के बाद तीनों माता अनुसूया के पास पहुंच क्षमा याचना करते हुए उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया। माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरुप में ही रहना ही होगा। यह सुनकर तीनों देवों ने अपने – अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया, जिनका नाम दत्तात्रेय रखा गया। इनके तीन सिर तथा छ: हाथ बने। तीनों देवों को एकसाथ बालरुप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रुप प्रदान कर दिया।

भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से ली शिक्षा

भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु थे। जिनमें पक्षी, थलचर, जलचर जीव, मनुष्य और प्रकृति शामिल हैं। जिनसे उन्होंने कुछ न कुछ सीखा। हम भी इन 24 गुरुओं से कुछ न कुछ सीख सकते हैं।
1. कबूतर: कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को बचाने के दौरान खुद भी फंस जाता है। यानी किसी से बहुत ज्यादा स्नेह आमतौर पर दु:ख का कारण होता है।
2. मधुमक्खी: मधुमक्खियां फूलों के रस से शहद बनाती हैं और एक दिन शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इससे सीख मिलती है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।
3. कुररी पक्षी: कुररी पक्षी (पानी के निकट रहने वाले स्लेटी रंग के पक्षी हैं। इनके पैर छोटे और जालपाद युक्त होते हैं, चोंच बड़ी और पैनी व डैने नुकीले होते हैं।) से चीजों को पास में रखने की सोच छोड़नी सीखनी चाहिए। कुररी पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे नहीं खाता है। दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को कुररी से उसे छिन लेते हैं। मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुररी को शांति मिलती है।
4. भृंगी कीड़ा: कीड़े से सीख मिलती है कि अच्छी हो या बुरी, जैसी सोच मन में लाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।
5. पतंगा: पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। उसी प्रकार रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में नहीं उलझना चाहिए।
6. भौंरा: जिस प्रकार भौंरा अलग-अलग फूलों से पराग लेता है, उससे सीख मिलती है कि, जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।
7. रेशम का कीड़ा: जिस प्रकार रेशम का कीड़ा ककून में बंद हो जाने पर दूसरे रूप का चिंतन कर वह रूप पा लेता है, हम भी अपना मन एकाग्र कर वह स्वरूप पा सकते हैं।
8. मकड़ी: मकड़ी की तरह भगवान भी मायाजाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है, ठीक इसी प्रकार भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।
9. हाथी: हाथी-हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है। इससे सीख मिलती है कि संन्यासी और तपस्वी पुरुष को कामवासना से दूर रहना चाहिए।
10. हिरण: हिरण उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है। हिरण की तरह ही जिंदगी को बेखौफ तरीके से जीना चाहिए।
11. मछली: कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लालच में मछली फंस जाती है। यानी स्वाद को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए।
12. सांप: सांप से सीख मिलती है कि किसी भी संन्‍यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए।
13. अजगर: हमें जीवन में अजगर की तरह संतोषी रहना चाहिए। यानी जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार करना चाहिए।
14. बालक: छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।
15. पिंगला वेश्या: एक दिन पिंगला वेश्या के मन में वैराग्य जागा तब उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में ही असली सुख है, तब उसे सुख की नींद आई। इससे दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिए जीना नहीं चाहिए।
15. कुमारी कन्या: एक बार दत्तात्रेय ने एक कुमारी कन्या को धान कूटते देखा और पाया कि इस दौरान उसकी चूड़ियों की आवाज से बाहर बैठे मेहमानों को परेशानी हो रही थी। यह देख उस कन्या ने सारी चूड़ियां तोड़ दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी ही रहने दी। इसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। अत: हमें भी एक चूड़ी की भांति अकेले जिंदगी जीने का साहस रखना चाहिए।
16. तीर बनाने वाला: अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाले को देखा, जो अपने काम में इतना मग्न था कि पास से राजा की सवारी निकल जाने पर भी उसका ध्यान भंग नहीं हुआ।
17. आकाश: दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में लगाव से दूर रहना चाहिए।
18. जल: हमें जल की तरह पवित्र रहना चाहिए।
19. सूर्य: जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है।
20. वायु: अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को नहीं छोड़ना चाहिए।
21. समुद्र: समुद्र की तरह ही जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।
22. आग: कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। जिस प्रकार आग अलग-अलग होने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है।
23. चन्द्रमा: आत्मा लाभ-हानि से परे है। बिल्कुल वैसे ही जैसे घटने-बढ़ने से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, हमेशा एक-जैसे रहती है।
24. पृथ्वी: पृथ्वी से सहनशीलता व परोपकार की भावना सीखने को मिलती है। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकार की भावना से सहन करती है।

गणेशजी के आशीर्वाद सहित
भावेश एन पट्टनी
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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