भविष्यवाणियों उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा व विधि – Utpanna Ekadashi Vrat Katha and Vidhi

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा व विधि – Utpanna Ekadashi Vrat Katha and Vidhi

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा व विधि – Utpanna Ekadashi Vrat Katha and Vidhi

एकादशी की उत्पत्ति

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व है। अाम तौर पर हर साल 24 एकादशियां आती हैं, लेकिन मलमास या अधिकमास को मिलाकर इनकी संख्या 26 भी हो जाती है। सबसे पहली एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को माना जाता हैं। चूंकि इस दिन एकादशी प्रकट हुई थी, इसलिये यह दिन उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है।

उत्पन्ना एकादशी 2018

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है। इस साल वर्ष 2018 में उत्पन्ना एकादशी व्रत 3 दिसंबर को है। हर माह के कृष्ण व शुक्ल पक्ष को मिलाकर दो एकादशियां आती हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन इस बात को बहुत कम ही लोग जानते हैं कि एकादशी एक देवी थी जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था। एकादशी मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थी जिसके कारण इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा। इसी दिन से एकादशी व्रत शुरु हुआ था।

एकादशी तिथि की शुरूअात 2 दिसंबर की दोपहर 2 बजे से ही हो जा रही है, लेकिन हिंदू मान्यताओं के अनुसार तिथि सूर्योदय के पश्चात मानी जाती है, इसलिये एकादशी का उपवास 3 दिसंबर को रखा जायेगा।

क्यों करते हैं उत्पन्ना एकादशी व्रत

उत्पन्ना एकादशी व्रत पूर्ण नियम, श्रद्धा व विश्वास के साथ रखा जाता है, इस व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत से मिलने वाले फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थ स्नान व दान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होते है। उपवास से मन निर्मल और शरीर स्वस्थ होता है।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

सतयुग में चंद्रावती नगरी में ब्रह्मवंशज नाड़ी जंग राज्य किया करते थे। मुर नामक उनका एक पुत्र भी था। मुर बहुत ही बलशाली दैत्य था। उसने अपने पराक्रम के बल पर समस्त देवताओं का जीना मुहाल कर दिया। इंद्र आदि सब देवताओं को स्वर्गलोक से खदेड़कर वहां अपना अधिकार जमा लिया। कोई भी देवता उसके पराक्रम के आगे टिक नहीं पाता था। इसके बाद देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर दैत्यों के अत्याचारों से मुक्त करने की प्रार्थना की। देवताओं के अनुरोध पर भगवान श्री विष्णु ने दैत्य पर आक्रमण कर दिया। हजारों वर्षों तक युद्ध चलता रहा और इस दौरान सैकडों असुरों को मारने के बाद भगवान विष्णु को नींद अाने लगी और वे बद्रीकाश्रम स्थित बारह योजन लम्बी सिंहावती गुफा में जाकर निद्रा में लीन हो गए। उनको मारने के खयाल से मुर भी गुफा में चला आया। भगवान विष्णु को सोते हुए देखकर उन पर वार करने के लिये मुर ने जैसे ही हथियार उठाये भगवान विष्णु के शरीर से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई। इसके बाद दैत्य तथा कन्या में काफी देर तक युद्ध होते रहा और इस बीच उस कन्या ने दैत्य को धक्का मारकर मूर्छित कर दिया और उसका सिर काट दिया, जिससे दैत्य की मृत्यु हो गई। जब श्री विष्णु भगवान निद्रा से उठे तो देखा की दैत्य मरा हुआ है तब वे सोचने लगे की इस दैत्य को किसने मारा। उस वक्त कन्या ने कहा कि दैत्य आपको मारने के लिये तैयार था तब मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध कर दिया। भगवान श्री विष्णु ने उस कन्या का नाम एकादशी रखा क्योंकि वह एकादशी के दिन श्री विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी इसलिए इस दिन को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाने लगा। भगवान विष्णु ने एकादशी को वरदान दिया कि आज से प्रत्येक मास की एकादशी का जो भी उपवास रखेगा उसके समस्त पापों का नाश होगा और विष्णुलोक में स्थान मिलेगा।

कब करें एकादशी उपवास की शुरुआत

जो श्रद्धालु एकादशी का उपवास नहीं रखते हैं और इस उपवास को लगातार रखने का मन बना रहे हैं तो उन्हें मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी से इसका आरंभ करना चाहिये क्योंकि इसी एकादशी से इस व्रत का प्रारंभ माना जाता है।

उत्पन्ना एकादशी व्रत व पूजा विधि

एकादशी के व्रत की तैयारी दशमी तिथि और उपवास दशमी की रात्रि से ही आरंभ हो जाता है। इसमें दशमी तिथि को सायंकाल भोजन करने के पश्चात अच्छे से साफ-सफाई कर लें। रात्रि को बिल्कुल भी भोजन न करें। ज्यादा बातचीत कर अपनी ऊर्जा व्यर्थ न करें और रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद स्नानादि के बाद भगवान की पूजा करें और कथा सुनें। इस दौरान पूरे दिन व्रती को बुरे कर्म करने वाले, पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये। रात्रि में भजन-कीर्तन करें और जाने-अंजाने हुई गलतियों के लिये भगवान विष्णु से क्षमा मांगे। द्वादशी के दिन प्रात:काल ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर अपने व्रत का पारण करना चाहिये। नियम पूर्वक किया गया उपवास बहुत ही पुण्य फलदायी होता है।

उत्पन्ना एकादशी तिथि व मुहूर्त

एकादशी व्रत तिथि – 3 दिसंबर 2018
पारण का समय – सुबह 07.02 से 09.06 बजे तक (4 दिसंबर 2018)
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त – 12.19 बजे (4 दिसंबर 2018)
एकादशी तिथि प्रारंभ – दोपहर 2 बजे से (2 दिसंबर 2018))
एकादशी तिथि समाप्त – 12:59 बजे (3 दिसंबर 2018)

गणेशजी के आशीर्वाद सहित,
गणेशास्पीक्स डाॅट काॅम

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